असली खेल तो अभी बाकी है
सच कहूँ तो, बिटकॉइन को कौन संभालेगा, यह बहस तो बस शुरुआत है. असली, दीर्घकालिक अवसर बाकी सब कुछ के टोकनाइज़ेशन में छिपा है. ज़रा सोचिए, कमर्शियल रियल एस्टेट, महँगी कलाकृतियाँ, प्राइवेट इक्विटी, या सोना चाँदी, सब कुछ ब्लॉकचेन पर यूनिक टोकन के रूप में मौजूद हो. इन संपत्तियों के प्रबंधन, व्यापार और सबसे महत्वपूर्ण, इनकी कस्टडी के लिए जिस बुनियादी ढाँचे की ज़रूरत होगी, वहीं असली मूल्य बनाया जा सकता है.
जो कंपनियाँ इसमें महारत हासिल कर लेंगी, वे सिर्फ़ सेवा प्रदाता नहीं रहेंगी, बल्कि वे एक नई वित्तीय प्रणाली की मौलिक पाइपलाइन बन जाएँगी. मेरे लिए, यही असली कहानी है. यह आज किसी क्रिप्टोकरेंसी की क़ीमत के बारे में नहीं है, बल्कि इस बारे में है कि कल के मालिकाना हक़ के बुनियादी ढाँचे को कौन नियंत्रित करेगा. यह उन कंपनियों का समूह है जो इस डिजिटल परिवर्तन के फावड़े और कुदाल का प्रतिनिधित्व करती हैं, एक ऐसा विषय जिसे कुछ लोग डिजिटल तिजोरी के रखवाले: टोकनाइज़्ड-एसेट कस्टोडियन क्यों नए बैंकिंग अभिजात वर्ग हैं कह रहे हैं. बेशक, यह कोई एकतरफ़ा दाँव नहीं है. यह पूरा क्षेत्र जोखिमों से भरा है. एक बड़ी सुरक्षा चूक न केवल कस्टोडियन के लिए, बल्कि पूरे बाज़ार के भरोसे के लिए विनाशकारी हो सकती है. नियामक अभी भी अपनी जगह बना रहे हैं, और नियमों में अचानक बदलाव रातोंरात व्यापार मॉडल को उलट सकता है. और यह न भूलें कि तकनीक अभी भी अविश्वसनीय रूप से नई है. यहाँ निवेश करने के लिए एक मज़बूत जिगर और यह स्वीकार करने की ज़रूरत है कि रास्ते में झटके, और शायद गड्ढे भी मिलेंगे.